अल्ट्रासाउंड या अल्ट्रासोनोग्राफी, अल्ट्रासाउंड या पराश्रव्य ध्वनि तरंगों पर आधारित एक चित्रांकन तकनीक है। चिकित्सा क्षेत्र में यह गर्भावस्था में शिशु के स्वास्थ्य, पथरी या पेट से जुड़ी बीमारियों व अन्य कई बीमारियों के बारे में जानकारी देता है।
अल्ट्रासाउंड (Ultrasound), एक सामान्य जांच है, जिसमें शरीर के सभी हिस्सों को देखने के लिए ध्वनि तरंगों का इस्तेमाल किया जाता है। यह ध्वनि तरंगें सुनाई नहीं देती, लेकिन अल्ट्रासाउंड मशीन के साथ जुड़ी हुई स्क्रीन पर तस्वीर देखी जा सकती है। अल्ट्रासाउंड के दौरान किसी तरह का दर्द भी नहीं होता।
अधिकतर समय अल्ट्रासाउंड इमेजिंग का इस्तेमाल गर्भावस्था के दौरान प्रसव के सही समय का अनुमान लगाने के लिए किया जाता है। इसके अलावा यह निम्न दिये गए विशेष अंगों के निदान में भी लाभकारी है:
गर्भवस्था - Pregnancy
गर्भावस्था के दौरान अल्ट्रासाउंड (Ultrasound in pregnancy) करवाने के कई कारण हो सकते हैं, जैसे प्रसव का समय, गर्भस्थ शिशु की स्थिति आदि की जानकारी हासिल करना।
जांच - Diagnostics
अल्ट्रासाउंड का इस्तेमाल आंशिक रूप से प्रभावित शरीर के अंगों की जांच के लिए किया जाता है, जिसमें दिल, रक्त वाहिका, लिवर, पित्ताशय की थैली, तिल्ली, अग्न्याशय, गुर्दे, मूत्राशय, गर्भाशय, अंडाशय, आंख, थायराइड, और अंडकोष आदि अंग शामिल होते हैं।
वक्षस्थल - Breast
वक्षस्थल में गांठ का अंदेशा होने पर, डॉक्टर अल्ट्रासाउंड करवाने की सलाह देता है, जिसके माध्यम से गांठ ठोस है या द्रव भरा हुआ जैसी स्थिति के बारे में पता किया जाता है। इस प्रकार की स्थिति को सिस्ट कहा जाता है।
अंडकोष - Testicles
यह जांच बहुत ही भिन्न है, जो हर्निया जैसी बीमारियों का पता लगाती है। इस जांच में तस्वीरें लेने के लिए मरीज से खड़ा रहने को कहा जाता है तथा इस प्रकार जोर लगाने के लिए बोला जाता है जैसे मलत्याग के समय करते हैं।
श्रोणि - Pelvic
इसमें महिलाओं के जननांग की जांच की जाती है, जिसके लिए जांच से पहले मरीज को 1 लीटर पानी पीना चाहिए ताकि ब्लैडर पूरा भर जाए। कुछ तस्वीरें पानी भरे ब्लैडर की ली जाती हैं और कुछ खाली ब्लैडर यानि शौचालय के बाद ली जाती हैं।
वैसे तो सभी अल्ट्रासाउंड प्रक्रिया के आधार पर एक जैसे ही होते हैं, लेकिन तकनीकी स्तर पर यह निम्न प्रकार के होते हैं:
डॉपलर अल्ट्रासाउंड - Doppler Ultrasound
डॉपलर अल्ट्रासाउंड, ऊतकों और रक्त वाहिकाओं की स्थिति की जांच करता है, जिससे रक्त कोशिकाओं में रक्त के बहाव व दबाव की जानकारी मिलती है। इस जांच से खून के थक्के, दिल से जुड़ी किसी बीमारी या नसों के रोग आदि के बारे में पता चलता है।
प्रसूति अल्ट्रासाउंड - Obstetric Ultrasound
यह जांच गर्भावस्था के दौरान की जाती है, जिसकी सहायता से प्रसव का समय, गर्भस्थ शिशु की स्थिति आदि का अनुमान लगाया जाता है।
3 डी और 4डी अल्ट्रासाउंड - 3D & 4D Ultrasound
3डी और 4 डी अल्ट्रासाउंड, अल्ट्रासाउंड जांच को अधिक कारगर बनाता है। 3डी अल्ट्रासाउंड में जहां शरीर के अंगों और विशेषकर गर्भ में पल रहे बच्चे की 3 डी तस्वीर सामने आती हैं वहीं 4 डी तकनीक में यह तस्वीर ना होकर एक चलचित्र की तरह होता है।
इकोकार्डियोग्राम अल्ट्रासाउंड - Echocardiogram Ultrasound
इकोकार्डियोग्राम अल्ट्रासाउंड, वह ध्वनि तरंगें हैं, जिनसे दिल का अल्ट्रासाउंड (जांच) किया जाता है। इसके अलावा यह हृदय वाहिकाओं की भी जांच करता है।
कैरोटिड अल्ट्रासाउंड - Carotid Ultrasound
कैरोटिड अल्ट्रासाउंड, वाहिकाओं में जमा हुए अतिरिक्त प्लाक को दर्शाता है, जो गर्दन की धमनियों में मोम जैसा जम जाता है। धमनियों में प्लाक जमने से गर्दन की नाड़ी असामान्य और रोगग्रस्त हो जाती है
अल्ट्रासाउंड विश्लेषण प्रकिया के समय सामान्यतः एक ही प्रणाली अपनाई जाती है, जो निम्न है:
अल्ट्रासाउंड के लिए मरीज को एक गाउन दिया जाता है और टेबल पर लेटने को कहा जाता है।
शरीर के प्रभावित हिस्से पर जेल लगाकर, एक वांड (जॉय स्टिक) जेल पर घुमाई जाती है। ये शरीर के आंतरिक भाग की तस्वीरों को दिखाने में मदद करता है।
कई बार जांच के दौरान मरीज को कुछ देर के लिए सांस रोकनी पड़ती है।
जांच पूरी होने के बाद, डॉक्टर अल्ट्रासाउंड को देखकर सुनिश्चित करता है कि जांच प्रक्रिया सही हुई है या नहीं। यदि नहीं तो दोबारा जांच की जाती है।
अल्ट्रासाउंड के कई प्रमुख लाभ हैं, जो रोगी के रोगों का परीक्षण कर उपचार में सहायक होते हैं।
यह आम तौर पर दर्द रहित होता है, जिसमें सुई, इंजेक्शन या किसी तरह की चीर- फाड़ की आवश्यकता नहीं होती है।
अल्ट्रासाउंड बहुत ही सुरक्षित है, जिसका एक्स-रे और सीटी स्कैन जैसे निदानों की तरह मरीजों पर कोई भी दुष्प्रभाव नहीं पड़ता।
अल्ट्रासाउंड, मांसपेशियों की मुलायम ऊतकों की छवियों को आसानी से स्पष्ट दर्शाता है, जो एक्स-रे नहीं कर सकता।
अल्ट्रासाउंड के प्रभाव से रोगग्रस्त अंगों में रक्त प्रवाह बढ़ता है, सूजन कम होती है और दर्द से आराम मिलता है।
यह जांच प्रभावित अंग की नाजुक वाहिकाओं के लिए भी सुलभ है, जो मालिश की तरह भी काम करता है।