गर्भधारण के दौरान समय-समय पर कई तरह की जांच की जाती हैं। इससे माँ और बच्चे के स्वास्थ्य की जानकारी मिलती है। साथ ही कोई कंप्लीकेशन ना हो इसकी जानकारी भी चिकित्सक को हो जाती है। यदि कोई कंप्लीकेशन होती भी है तो समय रहते उसका इलाज कर बच्चे और माँ को किसी परेशानी में आने से बचाया जा सकता है।
आइये जानते हैं कि गर्भधारण के दौरान डिलिवरी तक कौन-कौन सी चिकित्सा जांच (Medical Test During Pregnancy) की जाती हैं:-
1- सीबीसी यानी कम्पलीट ब्लड काउंट टेस्ट - CBC or Complete Blood Count Test
गर्भवती होने के बाद डॉक्टर आपका सीबीसी टेस्ट करेगा। इससे आपके रक्त में लाल और सफ़ेद कणों (RBC and WBC) का पता लगाया जा सकेगा। इसके साथ ही हीमोग्लोबिन, हेमैटक्रीट और प्लेटलेट्स काउंट की भी जांच की जाती है।
हीमोग्लोबिन रक्त में मौजूद प्रोटीन होता है जो कि सेल्स को ऑक्सीजन देता है और हेमैटक्रीट शरीर में लाल रक्त कणों को जांचने का माप है। दोनों में से किसी के भी कम होने पर एनीमिया कहा जाता है।
प्लेटलेट्स रक्त में थक्का जमने में सहायता करती हैं। महिला नार्मल डिलिवरी के दौरान तकरीबन आधा लीटर रक्त खो देती है। ऐसे में रक्त की कमी होने पर बच्चे और माँ दोनों के लिए स्थिति खतरनाक हो सकती है।
2- आरएच फैक्टर टेस्ट - RH Factor Test
आरएच फैक्टर टेस्ट में लाल रक्त कणों के सरफेस में प्रोटीन की मात्रा देखने को किया जाता है। अगर प्रोटीन होता है तो इसे आरएच पॉजिटिव कहा जाता है अन्यथा नेगेटिव। लगभग 85 प्रतिशत महिलाओं में यह टेस्ट पॉजिटिव ही आता है।
3- यूरिन टेस्ट - Urine Test in Hindi
गर्भवती महिला के स्वास्थ्य की सही जानकारी डॉक्टर यूरिन टेस्ट से ही लगा लेते हैं। इसमें मुख्यत: शुगर की जांच की जाती है। इसके साथ ही यूरिन में प्रोटीन की मात्रा, जो कि किडनी के इन्फेक्शन को दर्शाती है, की भी जांच की जाती है।
यूरिन टेस्ट के माध्यम से बैक्टीरिया की जांच की जाती है जो कि यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन को बताता है।
केटोन्स की भी जांच होती है जिससे यह पता चलता है कि शरीर ऊर्जा के लिए कार्बोहाइड्रेट की जगह वसा की इस्तेमाल तो नहीं कर रहा है।
4- रक्तचाप की जांच - Blood Pressure Test
गर्भवती महिला के रक्तचाप की जांच भी की जाती है। रक्तचाप ज्यादा हो या कम दोनों ही मामले में हानि हो सकती है।
5- भ्रूण का अल्ट्रासाउंड - Ultrasound of Fetus
भ्रूण के शारीरिक विकास को देखने के लिए समय समय पर अल्ट्रासाउंड किया जाता है। इसमें प्लेसेंटा की स्थिति और बच्चे के शरीर का हर माप देखा जाता है। बच्चे की मूवमेंट और अन्य क्रियाओं का भी पता अल्ट्रासाउंड से चलता है।
6- मल्टीपल मार्कर स्क्रीनिंग - Multiple Marker Screening
यह दो तरह का होता है। ट्रिपल स्क्रीन टेस्ट और क्वाड स्क्रीन टेस्ट (Tripel Screen Test and Quad Screen Test)। यह आहार नाल न्यूरल टयूब डिफेक्ट (Neural Tube Defect) देखने के लिए किया जाता है।
7- भ्रूण की हृदय गति मापना - Heart Beat Test of Fetus
हर महीने भ्रूण की हृदय गति में बदलाव आता है। जन्म के समय भी यह बदल जाती है। डॉक्टर समय-समय पर जांच कर चेक करते हैं की हार्ट बीट ठीक है या नहीं। यदि कम आये तो माना जाता है कि बच्चे को ऑक्सीजन कम मिल रही है।