फाइलेरिया रोग, जिसे हाथी पांव या फील पांव भी कहते हैं, (Elephantiasis) में अक्सर हाथ या पैर बहुत ज्यादा सूज जाते हैं। इसके अलावा फाइलेरिया रोग से पीड़ित व्यक्ति के कभी हाथ, कभी अंडकोष, कभी स्तन आदि या कभी अन्य अंग भी सूज सकते हैं। आम बोलचाल की भाषा में हाथीपांव (HathipaonHathipaon) भी कहा जाता है।
फाइलेरिया रोग एक कृमिवाली बीमारी है। यह कृमि (Worms) लसीका तंत्र (Lymphatic System) की नलियों में होते हैं और उन्हें बंद कर देते हैं। फाइलेरिया रोग, फाइलेरिया बैंक्रॉफ्टी (Filaria Bancrofti) नामक विशेष प्रकार के कृमियों द्वारा होता है और इसका प्रसार क्यूलेक्स (Culex) नामक विशेष प्रकार के मच्छरों के काटने से होता है।
इस कृमि का स्थायी स्थान लसीका वाहिनियाँ (Lymphatic vessels) हैं, परंतु ये निश्चित समय पर, विशेषतः रात्रि में रक्त में प्रवेश कर शरीर के अन्य अंगों में फैलते हैं।
कभी कभी ये ज्वर तथा नसों में सूजन उत्पन्न कर देते हैं। यह सूजन घटती बढ़ती रहती है, परंतु जब ये कृमि लसीका तंत्र की नलियों के अंदर मर जाते हैं, तब लसीकावाहिनियों का मार्ग सदा के लिए बंद हो जाता है और उस स्थान की त्वचा मोटी तथा कड़ी हो जाती है।
लसीका वाहिनियों के मार्ग बंद हो जाने पर कोई भी औषधि अवरुद्ध लसीकामार्ग को नही खोल सकती। कुछ रोगियों में ऑपरेशन (Surgery) द्वारा लसीकावाहिनी का नया मार्ग बनाया जा सकता है।
फाइलेरिया भारत के कई भागों में प्रचलित है और एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है। यह बीमारी पूर्वी भारत, मालाबार और महाराष्ट्र के पूर्वी इलाकों में बहुत अधिक फैली हुई है।
राष्ट्रीय फाइलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम (एनऍफ़सीपी) 1955 में इस रोग पर नियंत्रण पाने के उद्देश्य से शुरू किया गया था। भारत में फाइलेरिया का संक्रमण फैलने का सबसे बड़ा कारण डब्ल्यू वानक्रोफ़टी माना जाता है। देश में इस बीमारी का लगभग 98% भाग इसी की वजह से होता है। यह रोग महिलाओं की तुलना में पुरुषों में अधिक पाया जाता है।
गोवा, लक्षदीप, मध्य प्रदेश और असम जैसे राज्य फाइलेरिया से बहुत कम प्रभावित हैं। एक शोध के अनुसार करीब 550 लाख से भी अधिक लोगों को फाइलेरिया होने का जोखिम है तथा 21 लाख लोगों में फाइलेरिया होने के लक्षण हैं और लगभग 27 लाख लोग फाइलेरिया के संक्रमण में वाहक का काम कर रहे हैं
एक व्यक्ति से दूसरे तक यह रोग स्थानांतरित करने में क्यूलेक्स नामक मच्छर (Culex Mosquito) रोगवाहक का काम करता है। जो वयस्क परजीवी होता है वह छोटे और अपरिपक्व माइक्रोफिलारे को जन्म देता है और एक वयस्क परजीवी अपने 4-5 साल के जीवन काल में लाखों माइक्रोफिलारे लार्वा पैदा करता है।
माइक्रोफिलारे आमतौर पर व्यक्ति के रक्त परिधि में रात में प्रसारित होता है। यह बीमारी एक संक्रमित मच्छर क्यूलेक्स के काटने से फैलता है। जब कोई क्यूलेक्स मच्छर एक संक्रमित व्यक्ति को काटता है तो उस व्यक्ति से माइक्रोफिलारे उस मच्छर के शरीर में प्रवेश कर जाता है।
मच्छर के शरीर में माइक्रोफिलारे 7-21 दिनों में विकसित होता है। इसके बाद जब संक्रमित मच्छर किसी स्वस्थ व्यक्ति को काटता है तो उस व्यक्ति को भी यह रोग लग जाता है। एक अन्य परजीवी, जिसके कारण फाइलेरिया होता है उसे ब्रूगिया मलाई कहा जाता है। यह मानसोनिया (मानसोनियोडिस) एनूलीफेरा द्वारा फैलता है। ब्रूगिया मलाई का संक्रमण मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में पाया जाता है।