आहार विज्ञान पोषण के सिद्धांतों पर आधारित मनुष्य के भोजन का विज्ञान एवं कला है। इसे ‘‘मनुष्य की पोषणिक देख-रेख का विज्ञान एवं कला” भी कहा जाता है। आहार किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य तथा स्वस्थता वर्धन में एक अहम भूमिका निभाता है। एक अच्छे तथा संतुलित आहार की आदत जीवन क्षमता को बेहतर बनाती है तथा घटिया आहार रूग्णता और रोगों को बढ़ाता है। आहार-विज्ञान भोजन प्रबंधन से संबंधित होता है और पोषण स्वास्थ्य वर्धन से जुड़ा होता है।
अधिकांश शहरी जनसंख्या की भोजन-आदतों में परिवर्तन होने के कारण पोषण विज्ञानियों और आहार विज्ञानियों की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण होती जा रही है। वे, किसी व्यक्ति के विभिन्न पहलुओं जैसे आयु, कार्य दिनचर्या तथा बीमारी आदि को ध्यान में रखते हुए उपयुक्त भोजन आदतों तथा चिकित्सा विज्ञान का सुझाव देते हैं और उससे उनकी जीवन क्षमता में सुधार लाते हैं।
आहार वैज्ञानी अपने ग्राहकों को पोषण के सिद्धांतों के अनुसार भोजन बनाने की शिक्षा भी देते हैं। वे खाद्य उत्पादन एवं प्रसंस्करण, खाद्य पसंद को प्रभावित करने वाले मनोवैज्ञानिक तथ्यों, पाचन तथा पोषण संबंधित पहलुओं पर इसके प्रभाव के बारे में जानते हैं।
आहार विज्ञानी की भूमिका 19 वीं शताब्दी के प्रारंभ से ही काफी महत्वपूर्ण रही है। उनकी भूमिका से अब भी अनेक व्यक्ति अनभिज्ञ हैं। कुछ व्यक्ति सोचते हैं कि आहार विज्ञानी केवल व्यक्तियों को अपना वजन कम करने के लिए आहार संबंधी राय देते हैं, जबकि यह उनकी भूमिका का एक छोटा सा भाग है।
आहार विज्ञानी पोषण संबंधी देखभाल के बारे में कठिन निर्णय लेने में रोगी तथा चिकित्सा दल या फिजिशियन के बीच एक सम्पर्क-कड़ी होता है। एशियन सोसायटी ऑफ पैरेंटरल एंड एंटरल न्यूट्रीशन (ए.एस.ई.ए.एन.) का कथन है कि पोषण देखभाल में आहार विज्ञानी की भूमिका ने, देखभाल के पूर्व-स्थापित मानकों के अनुसार संतुलित पोषक तत्वों के पर्याप्त स्रोतों और मात्रा की सिफारिश की है।
रोगी की रोग-दशा पोषण संबंधी समर्थन अपर्याप्तता को अस्त व्यस्त कर देती है तो एक दुविधा की स्थिति आ जाती है, जिसके परिणाम-स्वरूप रोगी कुपोषण ग्रस्त हो जाता है।
आहार विज्ञानी को निम्नलिखित कार्य करने होते हैं: