चिरायता के बारे में आमतौर पर अधिकांश लोग जानते हैं, क्योंकि प्राचीन समय से इसका उपयोग आयुर्वेदिक व घरेलू उपचारों में होता आया है। चिरायता स्वाद में कड़वा होता है। चिरायता मूल रूप से नेपाल, कश्मीर और हिमाचल में पाया जाता है। इसके फूल बरसात और फल सर्दियों के मौसम में आते हैं।
चिरायता एक एंटीबॉयोटिक औषधि है, जो प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में मदद करता है। इसका रोजाना सेवन करने पर कीटाणु नष्ट हो जाते हैं और बीमारियां दूर रहती हैं।
आयुर्वेद के अनुसार चिरायता का उपयोग करने से बुखार, जलन, कृमि (कीड़े), त्रिदोष (वात, पित्त, कफ), तिल्ली और जिगर की वृद्धि, अजीर्ण, अम्लपित्त, कब्ज, अतिसार, प्यास, पीलिया, दिल की कमजोरी, रक्तपित्त, रक्तविकार, त्वचा के रोग, मधुमेह, गठिया व अन्य बीमारियों से छुटकारा मिलता है।
सूखी तुलसी पत्ते का चूर्ण, नीम की सूखी पत्तियों का चूर्ण, सूखे चिरायते का चूर्ण समान मात्रा (100 ग्राम) मिलाकर एक डिब्बे में भर कर रख लीजिए। मलेरिया, बुखार व अन्य रोगों की स्थिति में दिन में 3 बार दूध से सेवन करने से लाभ होगा।
नेत्र रोग - Eye Disease
चिरायता को पानी में घिसकर आंखों पर लेप करने से आंखों की रोशनी बढ़ जाती है और आंखों के अनेक रोगों में आराम मिलता है।
बुखार - Fever
एक गिलास पानी में 4 चम्मच चिरायता चूर्ण भिगोकर रात को रखें। सुबह उस पानी को छानकर आधा- आधा कप दिन में 3 से 4 बार पीने से बुखार उतर जाता है। इसके अलावा चिरायता के तेल से शरीर की मालिश करने से बुखार, पीलिया और कमजोरी दूर होती है।
मलेरिया (Malaria
चिरायता के रस और संतरे के रस को मिलाकर दिन में 3 बार रोगी को पिलाने से मलेरिया में आराम मिलता है।
सूजन - Swelling
चिरायता और सोंठ को समान मात्रा में लेकर काढ़ा बनाएं और उस काढ़े को रोजाना एक- एक कप दिन में 3 बार पिएं। ऐसा करने से शरीर की सूजन खत्म होती है।
त्वचा सम्बंधी रोग - Skin Problems
सोते समय चिरायते की पत्तियों को पानी में भिगोकर रखें और सुबह उठते ही इस पानी का सेवन करें। ऐसा करने से खून साफ होता है और त्वचा संबंधी रोग दूर होते हैं। खुजली, फोड़े फुन्सी जैसे रोगों में चिरायता का लेप लगाना चाहिए। इससे ये सभी रोग नष्ट हो जाते हैं।
वात-कफ ज्वर - Vata-Kapha Fever
चिरायता, सुगन्धबाला, गिलोय, नागरमोथा, कटाई, सरिवन, कटेली, गोखरू, सोंठ और पिठवन को लेकर हल्का- हल्का कूटकर काढ़ा बनाकर पीने से वात-कफ के बुखार से आराम मिलता है।
सन्निपात ज्वर - Typhus Fever
चिरायता रस को पानी या दूध में मिलाकर दिन में 3 बार सेवन करने से रुका हुआ बुखार (सन्निपात ज्वर) ठीक हो जाता है। इसके अलावा चिरायता सत्व का पानी के साथ दिन में दो बार सेवन करने से भी लाभ होता है।
गर्भाशय की सूजन - Uterus Swelling
चिरायते के पानी से योनि को धोकर पेडू़ और योनि पर चिरायता का लेप करें। ऐसा करने से गर्भाशय की सूजन कम होती है।
पेचिश - Dysentery
चिरायता, कुटकी, सोंठ, काली मिर्च, पीपल, नागरमोथा और इन्द्रयव एक समान मात्रा (10 ग्राम), 20 ग्राम चित्रक और 1.60 ग्राम कुड़ा के साथ मिलाकर चूर्ण बनाकर गुड़ के शर्बत के साथ सेवन करें। ऐसा करने से संग्रहणी अतिसार और पेचिश जैसे रोग दूर हो जाते हैं।
अग्निमान्द्यता या अपच - Indigestion
चिरायता, त्रिकुट, मुस्तक, कुटकी, इन्द्रयव, करैया की छाल और चित्रक समान मात्रा में लेकर चूर्ण बनाएं। इस चूर्ण को 4 से पांच ग्राम की मात्रा में दही या मट्ठा के साथ दिन में दो बार सेवन करें। ऐसा करने से अपच और संग्रहणी जैसे रोगों से छुटकारा मिलता है।
शीतपित्त - Urticaria
चिरायता, पटोल, अडूसा, लाल चंदन, कुटकी, त्रिफला और नीम की छाल समान मात्रा में लेकर 2 कप पानी में उबालकर काढ़ा बनाएं। इस काढ़े से शीतपित्त की समस्या में आराम मिलता है।
पेट के कीड़े - Stomach Worms
अक्सर बच्चों में पेट के कीड़े की शिकायत होती है। इस परेशानी को दूर करने के लिए चिरायता, तुलसी का रस, नीम की छाल के काढ़े में नीम का तेल मिलाकर सेवन करने से पेट के कीड़े दूर हो जाते हैं।
गठिया, दमा, रक्तविकार, मूत्र संबंधी परेशानी, खांसी, कब्ज, अरुचि, कमजोर पाचनशक्ति, मधुमेह, श्वास नलिकाओं में सूजन, अम्लपित्त तथा दिल के रोगों में चिरायता बहुत ही लाभदायक होता है। आधा चम्मच चिरायता चूर्ण दिन में दो बार शहद या देशी घी के साथ सेवन करने से सभी प्रकार के रोगों में लाभ मिलता है।
चिरायता एक आयुर्वेदिक औषधि के रूप में उपयोग की जाती है, लेकिन अधिक मात्रा में इस्तेमाल करना हानिकारक हो सकता है। इसलिए चिरायता का इस्तेमाल करने से पहले किसी अच्छे वैद्य या डॉक्टर से सलाह जरूर लें।
गर्भावस्था - Pregnancy
चिरायता का इस्तेमाल गर्भवती व स्तनपान कराने वाली महिलाओं को नहीं करना करना चाहिए।
शुगर की कमी - hypoglycemia
चिरायता, खून में शक्कर की मात्रा को कम करने में बहुत उपयोगी है। लेकिन कई बार इसके अधिक इस्तेमाल से खून में शुगर की मात्रा जरूरत से ज्यादा कम हो जाती है, जो रोगी के लिए खतरनाक साबित हो सकती है।
आंतों में अलसर - Intestinal Ulcer
चिरायता स्वभाव (तासीर) से बहुत गर्म होता है, जो कई बार दुष्प्रभावों का कारण भी बन सकता है। चिरायता का अधिक उपयोग करने से आंतों में अल्सर जैसी समस्याएं हो सकती है।